क्या

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

क्या ^१ संर्व॰ [सं॰ किम्] एक प्रश्नवाचक शब्द जो उपस्थित या अभिप्रेत वस्तु की जिज्ञासा करता है । उस वस्तु को सूचित करने का शब्द, जिसे पूछना रहता है । कौन वस्तु ? कौ न बात ? जैसे,—(क) तुम्हारे हाथ में क्या है ? (ख) तुम क्या करने आए थे ? मुहा॰—क्या उखाडना =कुछ न कर सकना । कुछ हानि न पहुँचा सकना ।—(बाजारु) । क्या कहना है ? —(१) प्रशंसा सूचक धन्य । साधु साधु । शाबास । वाह वा । बहुत अच्छा है । बहुत बढिया है । (२) (व्यंग्य) प्रशंसा के योग्य नहीं है । बहुत बुरा है । बहुत अनुचित है । बिलकुल ठीक नहीं है । जैसे,—पहला व्यक्ति—वह बहुत अच्छा लिखता है । दूसरा व्यक्ति—क्या कहना है । क्या खूब =दे॰'क्या कहना है' । क्या क्या =सब कुछ । बहुत कुछ । क्या कुछ क्या क्या कुछ =सब कुछ । बहुत कुछ । बहुत सी वस्तुएँ । बहुत सी बातें । जैसे—(क) उसने क्या क्या कुछ नहीं दिया ? (ख) तुमने क्या क्या कुछ नहीं कह डाला । क्या यह क्या वह =(१) जसा यह, वैसा वह । दोनों बराबर हैं । जैसे,—(क) उसके लिये क्या अँधेरा और क्या उजाला । (ख) उसका क्या रहना और क्या न रहना । (२) जब इसी को हम कुछ नहीं समझते, तब उसको क्या समझते हैं । दोनों तुच्छ हैं । जैसे,—क्या भेड, क्या भेड की लात! यह क्या करते हो ? =(आश्चर्य और खेदसूचक) यह ठीक नहीं करते । यह बुरा करते हो । यह विलक्षण कार्य करते हो । यह क्या किया ? = दे॰ 'यह क्या करते हो ?' (किसी की) क्या चलाते हो =क्या प्रसंग लाते हो ? क्या चर्चा करते हो ? बात ही कुछ औऱ है । दशा ही भिन्न है । बराबरी नहीं कर सकते । जैसे,—उनकी क्या चलाते हो ? वे अमीर हैं चाहे दस घोडें रखे । क्या चिज है ? =नाचीज है । तुच्छ है । (किसी की) क्या चलाई=दे॰ 'क्या चलाते हो' । क्या जाता है? =क्या नुकसान होता है ? कौन सा हर्ज होता है ? कुछ हानि नहीं । जैसे,—जरा कह देना, तुम्हारा क्या जाता है ? क्या जाने =कुछ नहीं जानते । ज्ञात नहीं । मालूम नहीं । जैसे,—क्या जाने वह कहाँ गया है ? क्या जाती दुनीया देखी? =क्या कारण हुआ (जो स्वाभाविरुद्ध कार्य किया ? ) । क्या नाम =नाम स्मरण नहीं आता ।—(जब बातचीत करते समय कोई बात याद नहीं आती, तब इस वाक्य को बीच में बोलकर रुक जाते हैं) । जैसे,—तुम्हार साथ उस दिन वही—क्या नाम ?— मथुराप्रसाद थे न ? । क्या पडना =क्या आवश्यकता होना । कुछ जरुरत न होना । कुछ गरज न होना । जैसे,—हमें क्या पडी है जो हम पूछने जाँय ? क्या पूछना है ?=दे॰ 'क्या कहना है' । क्या हुआ? = क्या हर्ज है । कुछ हर्ज नहीं है । कुछ परवा नहीं है । क्या बात, क्या बात है —दे॰ 'क्या कहना है' । क्या से क्या हो गया =बिलकुल बदल गया । और ही दशा हो गई । क्या समझते या गिनते हैं? =कुछ नहीं समझते । तुच्छ समझते हैं । तो फिर क्या है =तो और किसी बात की आवश्यकता नहीं । तो सब पूरा है । तो सब ठीक है । तो बडी अच्छी बात है । जैसे—वे आ जाँय, तो फिर क्या बात है । विशेष—यद्यपि यह शब्द सर्वनाम है, तथापि इसमें वियक्ति नहीं लगती । इसी से वस्तु की जिज्ञासा के लिये दो सर्वनाम हैं— 'कौन' और 'क्या' । 'कौन ' मे विभक्ति लग सकती है, क्या में नहीं । 'क्या' के आगे संज्ञा आने से वह विशेषणवत् हो जाता है । जैसे,—क्या वस्तु ? इस शब्द के आगे अधिकतर वस्तु, पदार्थ, चीज आदि सामान्य शब्द विशेष्य रुप से आते हैं, विशेष जाति या व्यक्तिबोधक नहीं ।

क्या ^२ वि॰

१. कितना ? किस कदर ? जैसे,—इस काम में तुम्हारा क्या खर्च पडा ?

२. बहुत अधिक । बहुतायत से । इतना अधिक ऐसा । जैसे,—(क) क्या पानी बरसा कि सब तराबोर हो गए । (ख) क्या भीड थी कि तिल रखने को जगह न थी ।

३. कैसा । किस प्रकार का । विलक्षण ढंग का । अपुर्व । विचित्र । जैसे,—(क) वह भी क्या आदमी है । (ख) क्या क्या लोग है ।

४. बहुत अच्छा । बहुत उत्तम । कैसा उत्तम । जैसे,—बाबू साहब भी क्या आदमी है कि जो मिलता है, प्रसन्न हो जाता है ।

क्या ^३ क्रि॰ वि॰

१. क्यों ? किसलिये ? किस कारण ? जैसे,— (क) तुम मुझसे क्या कहते हो । मै कुछ नहीं कर सकता । (ख) अब हम वहाँ क्या जायँ । मुहां॰—ऐसा क्या =ऐसा क्यो ? इसकी क्या आवश्यकता है ? क्या आए, क्या चले ? =बहुत जल्दी जा रहे हो । अभी थोडा और बैठो । (जब कोई किसी के यहाँ आता है और जल्दी जाना चाहता है, तब उसके प्रति यह कहा जाता है) ।

२. नहीं । जैसे,—जब उसमें दम ही नहीं तो क्या चलेगा ।

क्या ^४ अव्य॰ केवल प्रश्नसुचक शब्द । जैसे,—क्या वह चला गया ? मुहां॰—क्या आग, में डालुँ = इस वस्तु को लेकर क्या करुँ ? यह मेरे किस काम का है ।—(स्त्रियाँ खिझलाकर ऐसा बोल देती है) ।